इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र [आईजीसीएआर], भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के बाद परमाणु ऊर्जा विभाग की दूसरी सबसे बड़ी इकाई है। इसकी स्थापना सन् 1971 में चेन्नई [मद्रास] से 80 किलोमीटर दक्षिण में स्थित, कल्पाक्कम में की गई है। यह केंद्र भारत में सोडियम शीतित द्रुत प्रजनक रिएक्टर [एफबीआर] प्रौद्योगिकी के विकास की दिशा में निर्देशित वैज्ञानिक अनुसंधान और उन्नत अभियांत्रिकी के व्यापक बहु-विषयक कार्यक्रम के संचालन के मुख्य उद्येश्य से गठित किया गया है। यह भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य देश को बड़े पैमाने पर मौजूद थोरियम भंडार के उपयोग के लिए तैयार करना और 21वीं सदी में विद्युत ऊर्जा की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए साधन उपलब्ध कराना है। अपने उद्देश्यों को पूरा करने में, फ्रेंच रिएक्टर, रैप्सोडी पर आधारित 40 MWt की नाभिय शक्ति के साथ सोडियम शीतित द्रुत प्रजनक परीक्षण रिएक्टर [एफबीटीआर] का निर्माण करके एक मामूली शुरुआत की गई थी। इस रिएक्टर ने 18 अक्टूबर, 1985 को अपनी पहली क्रांतिकता प्राप्त की और एक छोटे क्रोड के साथ 10.5 MWt के अपने अधिकतम प्राप्य ऊर्जा स्तर पर प्रचालनाधीन है। यह चालक ईंधन के रूप में प्लूटोनियम, यूरेनियम मिश्रित कार्बाइड का उपयोग करने वाला दुनिया में अपनी तरह का पहला रिएक्टर है। विगत वर्षों में, केंद्र ने सोडियम प्रौद्योगिकी, रिएक्टर अभियांत्रिकी, रिएक्टर भौतिकी, धात्विकी एवं पदार्थ विज्ञान, ईंधन और इनके पदार्थों का रसायन विज्ञान सामग्री, ईंधन पुनर्संसाधन, रिएक्टर सुरक्षा, नियंत्रण और मापयंत्रण, कंप्यूटर अनुप्रयोग इत्यादि से संबंधित एफबीआर प्रौद्योगिकी के सभी आयामों को समाहित करते हुए व्यापक अनुसंधान एवं विकास सुविधाएं स्थापित की हैं और इस उन्नत तकनीक से संबंधित विभिन्न विषयों में एक मजबूत आधार विकसित किया है। एफबीटीआर के सफल संचालन से प्राप्त अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर, केंद्र ने 500 MWe, प्रोटोटाइप द्रुत प्रजनक रिएक्टर [पीएफबीआर] के डिजाइन और निर्माण का काम शुरू किया है। संरचनात्मक यांत्रिकी, ताप द्रवचालित और प्रवाह प्रेरित कंपन, उच्च तापमान सोडियम वातावरण में घटक परीक्षण, सोडियम-जल अभिक्रिया, सोडियम पंपों के हाइड्रोलिक विकास आदि के क्षेत्रों में विभिन्न अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाया गया और डिजाइन पूरा किया गया। भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम द्वारा पीएफबीआर का निर्माण और कमीशनन अपने उन्नत चरण में है। ईंधन चक्र को संवृत्त करने के प्रयास के अंतर्गत, एक द्रुत रिएक्टर ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्र निर्माणाधीन है।
न्यूट्रॉन रेडियोग्राफी, न्यूट्रॉन सक्रियण विश्लेषण आदि के लिए 30 KWt, U233 ईंधन चालित मिनी रिएक्टर [कामिनी] को प्रचालनरत कर दिया गया है। आईजीसीएआर मूलभूत, अनुप्रयुक्त और अभियांत्रिकी विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे संरचनात्मक यांत्रिकी, ऊष्मा एवं द्रव्यमान अंतरण, पदार्थ विज्ञान, संविरचन प्रक्रिया, अविनाशी परीक्षण, रासायनिक संवेदक, उच्च ताप ऊष्मागतिकी, विकिरण भौतिकी, कंप्यूटर विज्ञान आदि जैसे नाभिकीय प्रौद्योगिकी से संबंधित विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के एक प्रमुख केंद्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए अपनी विशेषज्ञता और संसाधनों का उपयोग करता है।
नाभिकीय तकनीकी से संबंधित महत्वपूर्ण क्षेत्रों के अलावा, केंद्र विभिन्न अग्रणी और सामयिक विषयों जैसे आंशिक क्रिस्टल, ऑक्साइड सुपरकंडक्टर, नैनो-स्ट्रक्चर, क्लस्टर, स्क्विड फैब्रिकेशन प्रोग्राम, एक्सोपॉलिमर और कोलाइड्स के उपयोग से संघनित पदार्थ के प्रयोगात्मक अनुकरण आदि में श्रेष्ठ अनुसंधान संगठन के रूप में प्रतिष्ठित है। आईजीसीएआर ने विशिष्ट समस्याओं के विश्वसनीय समाधान हेतु तकनीक विकसित करने के लिए रक्षा, अंतरिक्ष जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों सहित भारत के अन्य उद्योगों को अपनी विशेषज्ञता और सुविधाएं प्रदान की है। इसके अंतर्गत यह केंद्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय विज्ञान संस्थान, पिलानी, क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज, राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं, सार्वजनिक इकाइयों और विदेशी संस्थानों जैसे शैक्षिक तथा अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ सहयोग करता है। वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की तकनीकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक आधुनिक पुस्तकालय सेवारत है, जिसमें सभी विषयों को मिलाकर 62,000 पुस्तकें, 28,400 पिछले खंड, लगभग 785 पत्र-पत्रिकाएँ और 1.95 लाख रिपोर्ट शामिल हैं । परिशुद्ध घटकों के संविरचन हेतु केंद्रीय कार्यशाला अत्याधुनिक मशीनों से पूरी तरह सुसज्जित है। प्रयोक्ताओं की संगणनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कंप्यूटर प्रभाग में उन्नत उच्च प्रदर्शनयुक्त कंप्यूटिंग सर्वर और अनुप्रयोग पैकेज उपलब्ध हैं। केंद्र में कुल कार्मिकबल 2511 है, जिसमें 1243 इंजीनियर और वैज्ञानिक शामिल हैं। केंद्र अपनी गतिविधियों और योजनाओं के संचालन के लिए लगभग 8450 मिलियन रुपये वार्षिक परिव्यय का उपयोग करता है।
श्री सी. जी. करहाडकर, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक ने दिनांक 01.06.2024 को निदेशक, आईजीसीएआर के रूप में पदभार ग्रहण किया है।